हृदय में मचा भूचाल
बढ़ते हाथ कलम की ओर
मानो कलम न हो, हो ढाल
भ्रम में रहती जीवित
न रहते उसके होगा
मन आघातों से पीड़ित
कि करती कैद कहानी
और हरते हर मंशा को
शब्द-रुपी सैनानी
जैसे कागज़ की ओर
नस-सी कलम में बहता
रक्त हृदय को छोड़
करता शब्दों को संचित
जागृत होती कविता
मंद-मंद मन मूर्छित..
2 comments:
WOW!!! I just LOVED it.. :)
:)
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