एक बार साधवी ने मौन व्रत धारण किया.
कुछ ने कहा, तपस्या है, फल में मिलेगी शक्ति अपार.
नहीं भई, ये तो है नियम, आत्म-संय्यम का अभ्यास. साध्वी ही सही, पर देह तो है मनुष्य की, करना पड़ेगा प्रायश्चित.
मेरी मानो, मौन व्रत सन्देश है, बहिनों को, चुप्पी ही है औरत का गहना.
हुँह! ढोंगी ! जब सच सामने आया, तो मौन व्रत का नाटक!
सच सामने आया था. सूरज की तरह. पर शब्दों के डिब्बे में भर सकती अगर,
तो कैसा मौन? कैसा व्रत?