आज जब laptop bag में Pen खोजने के लिए हाथ डाला, तो हाथ आये bag -वाले गणेश.
Bag वाले भगवान अलग श्रेणी, अलग category के होते हैं. वही फर्क जो landline और mobile में होता है, bag वाले और घर वाले भगवान में भी होता है. Bag वाले भगवान light -weight और compact किस्म के होते हैं. इनमें भी अलग अलग varieties आती हैं - जैसे कि calendar वाले हनुमान, photo वाले साईं बाबा, locket रुपी माता रानी, वगैरह वगैरह. और यदि आप मूर्ती पूजन के विरुद्ध हैं, तो ख़ास आपके लिए आता है chewing gum के size का विभूति का packet , या फिर 108 बार राम नाम लिखा चावल का तिनका. गिनने का कष्ट न कीजिएगा. यदि श्रद्धा न हो तो उबाल के खा लीजिये.
हाँ, तो bag वाले गणेश जी मुझे मेरी दीदी ने दिए थे. दीदी ने मुझे कई bag वाले भगवान दिए हैं. भई अब जितने bag होंगे, उतने भगवान भी तो होने चाहिए. तो मतलब समझ लीजिये, कि जब भी किसी shopper's stop में सेल लगती है, हमारी पारिवारिक परंपरा कि वजह से, भगवानों के business में भी बढौतरी होती है. Economics की भाषा में इन्हें "complimentary business" कहते हैं. और कुछ लोग कहते हैं कि economics और religion सगे नहीं!
लाल रंग के छोटे से गणेश जी जब अचानक bag से निकले, तो बिलकुल वैसा लगा जैसे पुरानी किसी jeans में से 50 का नोट निकल आया हो. मन में ख़ुशी कि लहर दौड़ उठी. "क्यों गणेश जी? कहाँ छुप के बैठे रहे इतने दिन? हाथ आ ही गए ना !", थोड़ी देर हाथ में पकड़े-पकड़े मैंने उन्हें निहारा. क्या सोचते होंगे दिन भर बैग में बैठे-बैठे? "ये आया pen drive ! ये आया 2 का सिक्का! अरे! Design बदल दिया? पुराना वाला बेहतर था. कम से कम फर्क तो समझ आता था 2 और 1 के सिक्के में. खैर! अरे, ये क्या? नया mobile ? शुक्र है! Reliance CDMA को तो अब मैं भी नहीं बचा सकता. ये 3G है. अब wi-fi से दर्शन दिया करूंगा सबको. ऊँह हूँ ! फिर इस लड़की ने hotel वाला tissue घुसेड़ दिया! कब छोड़ेगी ये चिंदी-चोरी. वैसे तो बड़ी बातें करती है, दुनिया बदलने की. अपना bag साफ़ कर ले यही बहुत बड़ी बात होगी. दम घुट गया इस कबाड़-खाने में. मैं भी घर-वाला भगवान होता. मुझे भी इसकी माँ रोज़ प्यार से नहलाती. गुरुवार-गुरुवार साईं बाबा की खीर में से मैं भी कुछ प्रसाद चख लेता. लेकिन नहीं! इसे मेरी याद दिलाने के लिए तो कोई hard disk ही crash करानी होगी. या फिर जब लड़ लेगी किसी से, बैल की तरह, तब आएगी विघ्नहर्ता के पास रोते रोते. खैर! Wallet वाले साईं बाबा के पास हो के आता हूँ."
Wallet वाले साईं बाबा की condition थोड़ी बेहतर है. लेकिन आजकल उन्हें भी फिक्र होने लगी है, "क्या बताऊँ गणपति! पहले पाँच सौ - पाँच सौ के नोट हुआ करते थे, अब दस- पचास- सौ ही रहते हैं. सोचती है मुझे wallet में कैद रखने से पैसों की कमी नहीं होगी. अगर ऐसा होता तो सरकार नोट छापने के बजाय, मेरी तस्वीर न छापती?"
"हाँ, बात तो सौ आने की करी आपने"
"हा हा हा, तुम अभी भी भी आनों में ही अटके हो, गणपति ?"
" बुरा न मानना बाबा, अटके तो आप हैं. पाँच साल हो गए आपको इसके boyfriend की तस्वीर अपनी तस्वीर के पीछे छुपाये हुए. कभी मम्मी के सामने खुल जाता, तो इधर उधर तो आपको ही adjust करना पड़ता ना? अब शादी हो गयी है दोनों की, तो भूल ही गयी की अपने मियाँ की photo छुपाने की अब ज़रुरत नहीं. हमारी और उस बेचारे की एक ही दशा है - भूले- बिसरे, बंद, अँधेरी कोठरी में.."
"शुश्श.. गणपति, लगता है हाथ अन्दर आया!"
"भगवान! आज तो बाहर निकाल ले !"
और बाहर निकले गणेश जी!
गणेश जी, I am sorry . आप बहुत cute लग रहे हैं. जी भर के आपको निहार भी लिया. लेकिन अब आपको वापस जाना पड़ेगा, काल-कोठरी में, उन्हीं pens , headphones , tissue , post -its और wallet वाले बाबाजी के पास. माना कि आपके बारे में भूल जाती हूँ, और दुःख में ही सुमिरन करती हूँ, लेकिन mobile गणेश जी! अच्छे network कि यही तो ख़ासियत होती है. ऐसा साथ निभाता है कि अपनी कमी महसूस ही नहीं होने देता. आदत भी इतनी पड़ जाती है, कि उसी कि वजह से काम होते हैं, और उसी को भूल जाते हैं. तो फिर नाराज़ न होइए! "Wherever you go, our network follows" का मंत्र अपनाइए! जो किया, सो किया. अब Nokia कि तरह अपना बढ़िया वाला connection लगाइए.. और ये गए bag के अन्दर!
और सुनिए! मैं इतनी बुरी लड़की भी नहीं हूँ. ख़ास आप ही की सवारी के लिए HP का मूषक, यानि की mouse बैग में छोड़ा है.
क्या कहा? "Made in China" है? क्या गणेश जी! थोड़ा adjust कर लीजिये ना!