Thursday, February 5, 2009

संस्कृति

उन लोगों को समर्पित, जो भारत की संस्कृति के नाम पर हिंसा, दमन, शोषण और अंधविश्वास फैलाते हैं...

है
ख़ासा इस पर शोर हुआ
कोई कोतवाल, कोई चोर हुआ
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ

हैं रखवारे इसके अनेक
कर्ता, ज्ञाता, रचयिता भी
पर मायावी किसी यक्षिणी सी
यह बदल रूप सबको छलती


जितनी आँखें देखें इसको
उतनी ही दिखें इसकी छवियाँ
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ

वो बतलाना जिसे चाहते हैं
भारत कि अविचल संस्कृति
गंगा जो भर दो गागर में
गागर सी ले ले आकृति

जल की एक बूँद जमाने से
गंगा का क्या तय रूप हुआ?
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ


कोई पंडित है उपनिषदों का
कोई इतिहास, कोई लाठी का
सब एक नाम में ढूँढते हैं
अस्तित्व अपने होने का

चींटी तो ढेले को नापे
पर्वत का उसको मान कहाँ?
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ

जो पहनावे में खोजें इसे
पूछें उनसे, क्या है सही?
क्या वेद-काल का मृग-चर्म
या बिन चोली लिपटी साड़ी ?

मूरत का धातु बदलने से
क्या कृष्ण बदल कर कंस हुआ?
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ

अक़बर , कबिरा, गाँधी, शकुनि,
मंथरा, मीरा, लक्ष्मीबाई
एक मनुष्य में मिल जाते
जगते- सोते किरदार कई


फिर युगों से जीती कथाओं को
कब एक कथानक प्राप्त हुआ?
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ

1 comment:

Prashant Singh said...

मूरत का धातु बदलने से
क्या कृष्ण बदल कर कंस हुआ?
सदियों तक इस पर बहस हुई
नहीं जिसका कोई भोर हुआ

Very well put . it describes the situation very clearly . this remind me of Dushyant Kumar .
Keep writing !